वीर शिरोमणि अमर शहीद
ठाकुर दरियाव सिंह का जन्म सन १७
९५ ई० में गंगा यमुना पवित्र नदी
के मध्य भूभाग में बसे खागा नगर
में तालुकेदार ठा० मर्दन सिंह
के पुत्र रत्न के रूप में हुआ| आद�
� काल में इनके वंशज महापराक्रमी
सूर्यवंश के वत्स गोत्रीय क्ष�
�्रिय खड्ग सिंह चौहान ने इस भूभा�
� के राजा को परास्त करके उनके �
�ाज्य को अपने अधिकार में लेकर
एक नये नगर का निर्माण कराया था,
जो बाद में उन्ही के नाम पर खागा
नाम से प्रसिद्ध हुई, वर्तमान
में यह उत्तरप्रदेश के फतेहपुर
जनपद की एक तहसील है|
इनके वंशज राजस्थान से
आये रोर समूह के क्षत्रियो में
चौहान क्षत्रिय थे और इनके समाज
में रीति रिवाज एवम संस्कारो के
कठोर नियमो का पालन अनिवार्य था|
१८वी के शताब्दी मध्य तक सती प्�
�था लागू थी| ग्राम सरसई में सती
माता का मन्दिर आज भी विद्दमान
है| इनके समाज के लोग रक्त की
शुद्धता बनाये रखने के लिये �
�ाजस्थान से आये रोर समूह के क्ष�
�्रियो में ही वैवाहिक सम्बन्ध
करते थे| १८वी शताब्दी के अंत तक
इनके परिवार में कन्या का विवाह
रोर समूह के सिर्फ रावत, रावल, प�
�मार, सेंगर
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क्षत्रियो में ही होता
था और बधू सिर्फ रोर समूह के गौ�
�म, परिहार, चंदेल और बिसेन क्षत्�
�ियो के यहाँ से ही लाते थे| महार�
�ी ठाकुर दरियाव सिंह का ननिहाल ग
्राम बुदवन, खागा,जनपद फतेहपुर
में गौतम क्षत्रिय ठाoo० श्री पाल
सिंह के यहाँ था और इनकी ससुराल ग
्राम सिमरी,जनपद रायबरेली में ग
ौतम क्षत्रिय के यहाँ थी |इनकी प�
�्नी का नाम सुगंधा था| इनके दो प�
�म वीर पुत्र और दो कन्याएं थी| ज�
�नमें ज्येष्ठ पुत्र का नाम ठा०
सुजान सिंह और छोटे पुत्र का नाम
ठा० देवी सिंह था| इनकी बड़ी कन्या
का विवाह ग्राम किशनपुर जनपद फ�
�ेहपुर में रावत (गोत्र भरद्वाज)
क्षत्रियों के यहाँ हुई थी| छोटी
कन्या का विवाह ग्राम किशनपुर
में ही रावल (गोत्र काश्यप) क्ष�
�्रियों के यहाँ हुई थी जो कि ग्�
�ाम इकडला के निवासी थे| इतिहास
जानने के बाद ऐसा ज्ञात होता है
कि शायद ठा० सुजान सिंह और ठा०
देवी सिंह की ससुराल जनपद रायब�
�ेली में परिहार क्षत्रियो के
यहाँ हुई थी| ६ मार्च १८५८ को ठा०
देवी सिंह को छोडकर परिवार के सभ�
� सदस्य फांसी द्वारा म्रत्यु द�
�्ड पाकर वीरगति को प्राप्त होने
के उपरांत उन कठिन समय में ठा०
देवी सिंह अज्ञातवास को चले गये
थे और ठा० सुजान सिंह, ठा० देवी स�
�ंह की पत्नियो को अपने अपने पि�
�ा के यहाँ शरण लेनी पड़ी थी|
सन १८०८ ई० तक इस भूभाग
पर इनका अपना स्वतन्त्र राज्य �
�ा, इसके बाद में यह भूभाग अंग्�
�ेजो के आधीन हुआ| ठा० दरियांव सि�
�ह धर्म परायण साहसी स्वाभिमानी
रणविद्या में निपुण एवं कुशल सं�
�ठन कौशल के महारथी थे| सन १८५७ ई०
में इस पराक्रमी वीर के नेतृत्व
में यहाँ की जनता अंग्रेजी शासन
के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम
में भाग लेकर ८ जून सन १८५७ को अंग
्रेजो को परास्त कर जनपद के इस भ�
�भाग को अपने अधिकार में लेकर
स्वतंत्रता का परचम लहराया था|
इसी उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष
८ जून को यहाँ की जनता बड़े धूम
धाम से इस दिन को विजय दिवस के र�
�प में मनाती है| परन्तु कुछ ही
मास बाद यह भूभाग पुन: अंग्रेजो
के आधीन हुआ और चंद विश्वासघात�
�यो के कारण यह वीर अपने परिवार
एवं मित्रो सहित बंदी बनाये गए
और ६ मार्च १८५८ को फांसी द्वारा
म्रत्यु दण्ड पाकर यह वीर मात्�
�भूमि स्वाधीनता हेतु अपने पर�
�वार सहित शहीद होकर वीरगति को
प्राप्त हुए और इनकी सम्पति को अ
ंग्रेजो द्वारा गद्दारों को पु�
�स्कार स्वरुप दे दी गयी थी | आज भी
इनके भब्य गढ़ी के ध्वंसा अवशेष
इनके त्याग पराक्रम वीरता सघ�
�्ष और बलिदान का इतिहास संजोये
हुए है| अधिक जानकारी हेतु इस बटन
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सन्दर्भ-सूची :-रोर समूह
के क्षत्रियो के बारे में अधिक
जानकारी हेतु निम्न लिखित पुस्�
�क को पढ़े|
“रोर इतिहास की झलक“
द्वारा डाoo० राज पाल सिंह, पाल
पब्लिकेशन यमुना नगर(१९८७)
“रोर वंश का इतिहास”
द्वारा श्री रामदास, आल राउंड
प्रिंटर्स,करनाल(२०००)
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